MP board 12th history (इतिहास) Trimasik Paper Solution 2021-22 IMP

MP board 12th history (इतिहास) Trimasik Paper Solution 2021-22 IMP  

MP board class 12th history Trimasik Paper Solution 2021-22 आज हम आपको क्लास 12th इतिहास त्रैमासिक पेपर के लिए Solution बताने वाले हैं अगर आप क्लास 12th इतिहास त्रैमासिक पेपर के लिए imp Solution सर्च कर रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आएं हैं।

MP board 12th history (इतिहास) Trimasik Paper Solution 2021-22 IMP

दोस्तों माध्यमिक शिक्षा मंडल भोपाल द्वारा सितंबर में त्रैमासिक परीक्षा आयोजित की जाएंगी कोरोना काल के चलते विद्यार्थियों की विगत 2 वर्षों की शिक्षा अवरुद्ध हुई है जिसके कारण इस वर्ष की होने वाली परीक्षाओं में बहुत से  परिवर्तन किये गये हैं कुछ सिलेबस भी रिड्यूस कर दिया गया है। अब विद्यार्थियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि परीक्षा की तैयारी किस प्रकार से करें परीक्षा की दृष्टि से क्या important है। तो दोस्तों  आज हम आपके लिए कक्षा 12th के history (इतिहास) विषय की बहुुुत महत्वपूर्ण प्रश्न - उत्तर लेकर आए हैं जो trimasik exam ही नहीं बल्कि अर्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षा की दृष्टि से  भी महत्वपूर्ण हैैैै।

12th history most imp. Questions trimasik priksha 2021-22

दोस्तो इस पोस्ट में हम आपको  history के most important que. के full solution लेके आये है। आपके त्रिमासिक परीक्षा में जितना syllabus आने वाला है। उसी shyllabus को कवर किया गया है प्रश्नो को chapter वाइज लिखा गया है। आप इस पोस्ट को पूरा अवश्य पड़े । ये आपके लिए बहुत हि लाभदायक सिध्द होगी।



Chepter - 2 

  राजा, किसान और नगर : प्रारम्भिक राज्य और अर्थव्यवस्था

प्रश्न 1.  शिशु नाम की दो महत्वपूर्ण विजयों के नाम लिखिए।

 उत्तर- (i) अवन्ति की विजय, (ii) कौशल की विजय।

प्रश्न 2. मौर्य वंश के इतिहास का ज्ञान देने वाले दो मूल स्रोतों के नाम लिखिए।

उत्तर-(i) कौटिल्य का अर्थशास्त्र (ii) मेगस्थनीज की इण्डिया।

प्रश्न 3. चाणक्य (कौटिल्य) कौन था ?

उत्तर-चाणक्य तक्षशिला विश्वविद्यालय का राजनीति का प्रख्यात प्राध्यापक था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमन्त्री बना।

प्रश्न 4. चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में कौन-सा विदेशी यात्री आया था ?

उत्तर-चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में मेगस्थनीज आया था।

प्रश्न 5. कनिष्क के दरबार के दो विद्वानों के नाम लिखिए।

उत्तर-(i) अश्वघोष, (ii) नागार्जुन।

प्रश्न 6. गुप्तकाल की जानकारी के कोई दो साधन लिखिए।

उत्तर-(i) कालिदास, विशाखदत्त तथा भारवि द्वारा लिखित ग्रन्थ।

(ii) प्रयाग प्रशस्ति लेख तथा मैहरोली का लौह स्तम्भ तथा जूनागढ़ के निकट गिरिनार का लेख।


प्रश्न 7. गुप्तकाल के पतन के दो कारण लिखिए।

उत्तर-(i) स्कन्दगुप्त के बाद सिंहासन के लिए संघर्ष हुए, जिसमें गुप्त साम्राज्य निर्बल हो गया। (ii) सामन्तों ने साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिये।


प्रश्न 8,"समुद्रगुप्त भारतीय नेपोलियन था।" यह कथन किसका है?

उत्तर--"समुद्रगुप्त भारतीय नेपोलियन था"। यह कथन इतिहासकार स्मिथ का है।

प्रश्न 9. कलिंग विजय का अशोक के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर-कलिंग युद्ध के भीषण हत्याकाण्ड का अशोक के हृदय पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसने यह निश्चय कर लिया कि वह राज्य विस्तार की नीति को त्याग देगा और भविष्य में कभी युद्ध न करेगा। युद्ध के स्थान पर वह सबसे मैत्री रखेगा और राज्य विजय के स्थान पर धर्म विजय करेगा। अशोक ने यह निश्चय अपने तक ही सीमित नहीं रखा वरन् अपने पुत्र तथा पुत्र और पौत्र को भी यह उपदेश दिया कि वे युद्ध न करें। अशोक की इस नीति का परिणाम साम्राज्य के लिए हितकर सिद्ध न हुआ और उसका उत्तरोत्तर पतन होता गया, किन्तु इस नीति का धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। और इसका प्रचार कर उसे सार्वभौम धर्म बना दिया। अन्य राज्यों के साथ मैत्री रखकर अशोक ने भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का प्रचार विदेशों में किया।

प्रश्न 10. मौर्य साम्राज्य के पतन के चार कारण लिखिए।

उत्तर-(i) मौर्य साम्राज्य के पतन का प्रमुख कारण अशोक की अहिंसा की नीति थी। कलिंग युद्ध के बाद से उसने युद्ध सदैव के लिए बन्द कर दिया और धर्म प्रचार में लग गया। इससे साम्राज्य सैनिक दृष्टि से दुर्बल हो गया।

(ii) साम्राज्य विशाल था जिसको एक केन्द्र से नियन्त्रित करना सम्भव नहीं था।

(iii) अशोक का कोई भी उत्तराधिकारी ऐसा नहीं था, जिसमें सैनिक तथा शासक की प्रतिभा होती। अतः साम्राज्य पत्तों की तरह बिखर गया।

(iv) दरबारी कुचक्रों के कारण भी साम्राज्य निर्बल हो गया और उसका पतन हो गया।

 प्रश्न 11. "कनिष्क बौद्ध धर्म का संरक्षक था।" इस कथन के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था। कनिष्क के कुछ सिक्कों पर बुद्ध की प्रतिमा बनी हुई है तथा ह्वेनसांग (हुवान च्वांग) के लेखों से इस बात की पुष्टि होती है। कनिष्क पेशावर में एक विशाल विहार बनवाया जो सम्पूर्ण बौद्ध जगत में प्रसिद्ध है। उसने अपने कार्यकाल में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया। कनिष्क ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक विहार, स्तूप तथा चैत्यों का निर्माण कराया। उसने पुराने विहारों की मरम्मत कराई, बौद्ध भिक्षुओं के जीवनयापन के लिए बहुत-सा धन वितरित किया। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को मध्य एशिया, तिब्बत, चीन तथा जापान भेजा। उसके प्रयत्नों से विदेशों में बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार हुआ।


प्रश्न 12.  समुद्रगुप्त को भारतीय नेपोलियन कहने के कोई तीन तर्क दीजिए।

अथवा

समुद्रगुप्त को भारतीय नेपोलियन क्यों कहा जाता है ? समझाइए।

उत्तर-(i) समुद्रगुप्त नेपोलियन की तरह महान विजेता तथा साम्राज्य निर्माता था।

(ii) जिस तरह नेपोलियन ने सारे यूरोप को रौंद डाला, आंतकित कर दिया, उसी प्रकार समुद्रगुप्त ने भी अपने बाहुबल से सम्पूर्ण भारत पर अधिकार कर लिया।

(iii) समुद्रगुप्त ने उत्तरी भारत के नौ राज्यों, 18 अटवीक राज्यों, 12 दक्षिण भारत के राज्यों, सीमान्त क्षेत्र के 5 राज्यों तथा 9 गणराज्यों पर विजय प्राप्त की।


प्रश्न 13. फाह्यान का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर-फाह्यान एक चीनी यात्री था। वह चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल था। वह एक बौद्ध भिक्षु था। धर्म की पुस्तकों की खोज तथा बौद्ध तीर्थ स्थानों के दर्शन लिए यात्रा के अनेक कष्ट सहता हुआ बुद्धदेव की पवित्र जन्मभूमि भारत आ पहुँचा। उसने  भारत में गांधार, पेशावर, तक्षशिला, मथुरा, मालवा, कन्नौज, पाटलिपुत्र आदि स्थानों का भ्रमण किया। उसने अपना सम्पूर्ण समय बौद्ध पुस्तकों के अध्ययन में बिताया। उन्होंने अपनी यात्रा का जो विवरण लिखा है, उससे तत्कालीन भारत के सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा आर्थिक जीवन की अच्छी जानकारी प्राप्त हो जाती है।


प्रश्न 14. गुप्तकालीन शासन व्यवस्था की चार विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-(i) गुप्त शासकों की शासन प्रणाली का स्वरूप राजतन्त्रात्मक था। सामान्यतः राजा का बड़ा पुत्र उसका उत्तराधिकारी होता था।

(ii) गुप्तकालीन शासन व्यवस्था का मूल आधार सामन्ती व्यवस्था थी।

(iii) गुप्त शासकों ने सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर दिया था। समस्त शासन चार भागों में विभाजित था-केन्द्रीय शासन, प्रान्तीय शासन, जिले का शासन तथा ग्राम का शासन।

(iv) गुप्त शासकों की धार्मिक नीति सहिष्णुता की थी। उन्होंने सभी धर्मों के विकास का समान अवसर दिया।

प्रश्न15. अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए क्या-क्या कार्य किये। 

उत्तर-(1) अशोक ने निजी आदर्श को विश्व के सामने रखा। (2) उसने तीर्थ यात्रा करके धर्म का प्रचार किया।

(3) धर्म के प्रचार के लिए उसने धर्म महामात्रों की नियुक्ति की।

(4) शिलालेख खुदवाये।

 (5) धार्मिक उत्सव तथा समारोह का आयोजन किया।

 (6) धर्म सम्मेलनों का आयोजन किया।

 (7) मठों तथा विहारों का निर्माण कराया।

 (8) विदेशों में धर्म प्रचारक भेजे।

 (9) श्रीलंका में धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा को भेजा।

(10) लोकहित के कार्य किये।

प्रश्न 16. मथुरा कला की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-(1) मथुरा कला शैली का विषय बुद्ध तथा अन्य भारतीय धार्मिक अभिव्यक्तियों  से सम्बन्धित है।

(2) मथुरा कला विशुद्ध व भारतीय परम्परानुसार है।

(3) इस कला में विकसित प्रेरणा तथा प्रौढ़ता का पुट है।

(4) इस कला में बनी मूर्तियों में आध्यात्मिक भावों की अभिव्यक्ति होती है।

(5) इस शैली में बनी हुई बुद्ध की मूर्तियों में उनके उन्मीलित नेत्र, भरे हुए गाल तथा मीठी मुस्कान से भरे हुए होठ हैं।

(6) मथुरा की कला ने आगामी भारतीय कला को प्रेरणा तथा प्रौढ़ता प्रदान की है।


प्रश्न 17. "अशोक प्राचीन भारत का महानतम् शासक था।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-यह कथन सत्य है कि अशोक की गणना विश्व के महानतम् सम्राटों में की जाती है और आज तक विश्व में अशोक की बराबरी करने वाला दूसरा सम्राट नहीं हुआ। अशोक मानव सभ्यता का अग्रदूत, समाज सेवक तथा भारतीय इतिहास का चमकता हुआ सितारा है। उसने अपनी प्रजा की भौतिक, आध्यात्मिक तथा नैतिक प्रगति करने का प्रयत्न किया। उसने वसुधैव कुटुम्बकम् की ज्योति जलाई। वह आज भी विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उसकी महानता की विवेचना निम्न प्रकार से की जा सकती है-

(1) एक महान विजेता के रूप में हृदय परिवर्तन- अशोक एक महान विजेता था। कलिंग के युद्ध से यह बात सिद्ध हो जाती है। विश्व में ऐसा कोई सम्राट नहीं हुआ, जिसका अपनी ही जीत के बाद हृदय बदल गया हो। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने युद्ध को सदैव के लिए तिलांजलि दे दी और धर्म प्रचार को अपना लक्ष्य बनाया। यह अशोक की महानता का साक्षात् प्रमाण है।

(2) महान शासक-  अशोक ने प्रशासनिक क्षेत्र में जिस त्याग, बलिदान, दानशीलता तथा उदारता का परिचय दिया वह मानव को अपना नैतिक स्तर ऊँचा उठाने की प्रेरणा देता है। अशोक ने वास्तव में अपनी प्रजा को सन्तानवत् समझा और मानसिक, आध्यात्मिक तथा भौतिक सुख की समृद्धि के लिए प्रयत्न किया। उसने अपनी सम्पूर्ण शक्ति प्रजा के हित में लगा दी।

(3) महान धार्मिक तथा प्रचारक-  कलिंग युद्ध की भीषणता ने अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी बना दिया, किन्तु उसके धर्म में संकीर्णता नहीं थी। उसने जिन सिद्धान्तों का प्रचार किया वे किसी धर्म विशेष के सिद्धान्त नहीं थे बल्कि उसे प्रत्येक जाति, धर्म तथा देश का व्यक्ति अपना सकता था। उसने अपने धर्म में मन, वचन, कर्म की पवित्रता तथा चरित्र की शुद्धता पर बल दिया। अहिंसा और सहिष्णुता उसके धर्म की विशेषता थी। अशोक ने अपने साम्राज्य की शक्ति धर्म के प्रचार में लगा दी। बौद्ध धर्म को उसने विश्व धर्म में बदल दिया।

उसने देश-विदेश में प्रचार हेतु शासन की ओर से प्रबन्ध किया। अनेक मठों तथा शिलालेखों का निर्माण कराया, धर्म महामात्यों की नियुक्ति की, धार्मिक उत्सव, समारोह तथा सम्मेलनों का आयोजन किया।

(4) विश्व शान्ति का अग्रदूत-  कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने सत्य, सत्कर्म, सद्भावना तथा सद्व्यवहार के द्वारा लोगों के हृदय पर विजय करके विश्व शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न किया। संसार के अधिकांश शासक अपनी समस्याओं को युद्ध द्वारा ही सुलझाते रहे हैं, किन्तु अशोक विश्व का पहला शासक था जिसने वसुधैव कुटुम्बकम् का पाठ पढ़ाया और युद्धों का सदैव के लिए त्याग करके स्थायी सुख तथा शान्ति की स्थापना करना अपना मूल उद्देश्य बनाया। उसका विचार था कि विश्वास देकर विश्वास प्राप्त किया जा सकता है। इस कारण उसने अपने देशवासियों की तरह ही विदेशों में जनता की भलाई के लिए ही कार्य किये। अशोक ने उन्हें अपना विश्वासपात्र तथा मित्र बनाया।

प्रश्न 18. मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर- अशोक की मृत्यु के बाद शक्तिशाली मगध साम्राज्य का आधी शताब्दी के भीतर ही पतन हो गया। मौर्य वंश के अन्तिम सम्राट वृहद्रथ का अपने सेनापति पुष्यमित्र के ही मारे जाने से मौर्य वंश पूर्णतः समाप्त हो गया। मौर्य साम्राज्य के पतन के निम्न कारण हैं-

(1) अशोक की अहिंसा की नीति- अशोक की अहिंसा की नीति के कारण सैनिक वन निर्बल हो गया। सेना में उदासीनता और अकर्मण्यता फैल गयी। सेना तो तभी शक्तिशाली रहते है, जब उसे युद्ध के मैदान में निरन्तर अभ्यास का अवसर मिलता रहे।

(2) साम्राज्य की विशालता-  मौर्य साम्राज्य बड़ा होने के कारण उस पर एक केन्द्र से अधिकार रखना सम्भव नहीं था। जब तक सम्राट योग्य तथा प्रतिभाशाली रहे तब तक साम्राज्य की एकता कायम रही, किन्तु जैसे ही शासन में ढील आयी, वह छिन्न-भिन्न हो गया।

(3) अशोक की नीति के विरुद्ध ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया- श्री एच. पी. शास्त्री का मत है कि अशोक की नीति का ब्राह्मणों ने विरोध किया और अन्त में मौर्य वंश का नाश ब्राह्मणों के हाथों ही हुआ।

(4) साम्राज्य का विकेन्द्रीकरण-  मौर्य सम्राटों ने सारे विजित प्रदेशों को एक केन्द्र लाने का प्रयत्न किया, किन्तु पुराने जनपदों में स्वतन्त्रता की भावना सदैव विद्यमान रही। दूसरे, मौर्यों की शासन व्यवस्था में यह दोष था कि प्रान्तीय शासकों को बहुत स्वतन्त्रता दे रखी थी। उन्होंने जब भी सम्राट की शक्ति को कमजोर देखा तभी उन्होंने विद्रोह कर दिया और स्वतन्त्र शासक बन बैठे।

(5) अशोक के उत्तराधिकारियों की अयोग्यता - अशोक का कोई भी उत्तराधिकार ऐसा नहीं था, जिसमें सैनिक तथा शासक की प्रतिभा होती। अशोक की मृत्यु विरोधी शक्तियों ने सिर उठाया, उसको वे रोकने में असफल रहे। मौर्यों के विशाल साम्राज्य के वे संगठित नहीं रख सके। किसी सम्राट की अयोग्यता का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि उसकी सेना के सामने ही उसका सेनापति सम्राट का वध कर दे। वृहद्रथ के साथ यही हुआ।

(6) अधिकारियों का अत्याचारपूर्ण शासन-  दूरस्थ प्रान्तों में स्थानीय अधिकारियों का अत्याचारपूर्ण शासन भी मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी था। बिन्दुसार के समय तक्षशिला में जो विद्रोह हुआ उसके लिए अमात्य उत्तरदायी था। अशोक के समय के विद्रोह का भी यही कारण था। बाद में भी ऐसे ही विद्रोह हुए।

(7) बाह्य आक्रमण- यूनानियों ने मगध साम्राज्य पर आक्रमण किये। इन आक्रमणों के बाद के मौर्य सम्राट सामना नहीं कर सके। इस कारण वे जनता की निगाह में गिर गये। इस कारण मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ।

(8) दरबारी-कुचक्र-  अशोक के पुत्रों तथा दरबार में बराबर षड्यन्त्र चलते रहे। सेनापति पुष्यमित्र ने जब यह देखा तो उसने सम्राट वृहद्रथ की हत्या कर दी और शासन सत्ता पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया। 

प्रश्न 19. गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-गुप्त साम्राज्य के पतन के निम्न कारण हैं-

(1) हूणों के आक्रमण- हूणों के आक्रमणों ने गुप्त साम्राज्य को बहुत क्षति पहुँचाई। तोरमण तथा मिहिरकुल के आक्रमणों ने गुप्त साम्राज्य को तहस-नहस कर दिया।

(2) अयोग्य उत्तराधिकारी- बाद के गुप्त शासक विलासी तथा सैनिक दृष्टि से दुर्बल थे। वे विशाल गुप्त साम्राज्य को संगठित नहीं रख सके। युवान च्चांग ने लिखा है, “स्यामकोट के शासक ने जब गुप्त राजा बालादित्य पर आक्रमण किया तो वह उससे भयभीत होकर अपनी बहुत-सी प्रजा के साथ एक द्वीप में चला गया।" इस प्रकार बाद के अयोग्य उत्तराधिकारियों के कारण गुप्त साम्राज्य का पतन हुआ।

(3) प्रान्तीय शासकों के विद्रोह- प्रान्तीय शासकों के विद्रोह साम्राज्य के पतन के मुख्य कारण थे। प्रान्तीय शासक प्राय: स्थानीय सामन्त राजा थे जो दुर्बल होने के कारण समुद्रगुत और चन्द्रगुप्त के अधीन हो गये थे। जब केन्द्रीय सत्ता क्षीण होने लगी तो उन्होंने विद्रोह कर दिया और अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिये। मालवा, मगध, बंगाल, काठियावाड़, बुन्देलखण्ड आदि में स्वतन्त्र शासन की स्थापना हुई।

(4) आन्तरिक कलह-  स्कन्दगुप्त की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के लिए संघर्ष हुआ।जिसके फलस्वरूप साम्राज्य का विभाजन हो गया। स्कन्दगुप्त के बाद पुरगुप्त, कुमारगुप्त द्वितीय तथा बुद्धगुप्त के काल में सत्ता के लिए संघर्ष हुआ। उन्होंने साम्राज्य के विभिन्न भागों में अपने-अपने स्वतन्त्र राज्य कायम कर लिये। इससे साम्राज्य दुर्बल हुआ और उसका पतन हो गया।

प्रश्न 20. अशोक के शिलालेखों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-अशोक के शिलालेख प्राकृतिक भाषा में लिखे हैं। इसमें कुछ में ब्राह्मी लिपि तथा कुछ में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया है। इनका विवरण निम्न प्रकार है-

(1) दो लघु शिलालेख- पहले शिलालेख से अशोक के व्यक्तिगत जीवन पर प्रकाश पड़ता है और दूसरे में धर्म का सारांश दिया हुआ है। इनमें से दूसरा लेख सिद्धपुर, जितिग रामेश्वर, ब्रह्मगिरि में पाया गया है। रूपनाथ (मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में), हंसराज (बिहार के आरा जिले में), बैरॉट (जयपुर के निकट) तथा मोस्की, गवीमठ, कीगुण्डू येरागुडी में पाया जाता है।

(2) भाव का लेख-  इस लेख से अशोक के बौद्ध धर्मावलम्बी होने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है।

(3) चौदह शिलालेख- इनमें अशोक की नीति तथा शासन-सम्बन्धी सिद्धान्तों की विवेचना की है। इनकी प्रतियाँ इन स्थानों में मिली हैं-(1) शाहवाजगढ़ी (पेशावर जिले में),(2) मंसेहरा (हजारा जिले में), (3) काल्सी (देहरादून जिले में), (4) धौली (उड़ीसा के पुरी जिले में), (5) गिरिनार (जूनागढ़ के निकट), (6) जौगड़ (गंजाम नगर से लगभग 28 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में), (7) येरागुड़ी (कर्नूल जिले में गूटी से 28 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में), (8) सोपारा (महाराष्ट्र के थाना जिले में)।

(4) कलिंग के दो पृथक लेख- धौली तथा जौगड़ की शिलाओं पर लेख संख्या 11, 12 और 15 उत्कीर्ण नहीं हैं। उनके स्थान पर पृथक लेख हैं, जिनमें उन सिद्धान्तों की व्याख्या की गयी है जिनके आधार पर नवविजित प्रान्त का प्रशासन चलाना चाहिए।

(5) गुफा-लेख-  गया से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाएँ हैं। उनमें तीन की दीवारों पर अशोक के लेख हैं।

(6) सात स्तम्भ- लेख-ये लेख उत्तर भारत के छ: स्थानों में स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं-(1) दिल्ली-टोप्रा स्तम्भ, (2) मेरठ-दिल्ली स्तम्भ पहले मेरठ में था। इसको भी फीरोज तुगलक ही दिल्ली ले गया था। (3) तीसरा इलाहाबाद में है। (4) लौरिया-अराराज स्तम्भ,(5) लौरिया-नन्दनगढ़ स्तम्भ और (6) रामपुरवा स्तम्भ ।

(7) लघु स्तम्भ-  लेख-ये लेख इलाहाबाद, साँची तथा सारनाथ के स्तम्भों पर पाये गये हैं।(8) तराई के लेख-ये लेख रुम्मनदई तथा निग्लीवा में पाये गये। दोनों ही स्थान नेपाल की तराई में स्थित हैं, इसीलिए इन्हें तराई लेख कहा गया है।


Chepter - 3 
 बन्धुत्व जाती तथा वर्ग : प्रारम्भिक समाज

प्रश्न 1. महाकाव्यकालीन इतिहास के स्रोतों की एक सूची बनाइए।

उत्तर-(1) महाभारत, (2) रामायण, (3) अभिलेख, (4) अवशेष, (5) स्मारक-भवन,(6) सिक्के, (7) मूर्तियाँ तथा चित्र, (8) ब्राह्मण साहित्य, (9) उपनिषद, (10) पुराण, (11) वेदांग, (12) स्मृतियाँ, (13) जैन तथा बौद्ध साहित्य।

प्रश्न 2. संस्कार का क्या अर्थ है?

उत्तर- संस्कार का अभिप्राय शुद्धि की धार्मिक क्रियाओं तथा व्यक्ति के शारीरिक मानसिक तथा बौद्धिक परिष्कार के लिए किये जाने वाले अनुष्ठानों से है, जिससे वह समाय का पूर्ण विकसित सदस्य हो सके।


प्रश्न 3. धर्मसूत्र या धर्मशास्त्र क्या थे?

उत्तर- ब्राह्मणों ने समाज के लिए विस्तृत आचार संहिताएँ तैयार की थीं। इनका पालन ब्राह्मणों को विशेष रूप से करना पड़ता था। शेष समाज को भी इससे बाँधा गया था। 500 ई. पू. में इन मापदण्डों (नियमों) का संकलन संस्कृत ग्रन्थों में किया गया है। इन ग्रन्थों को धर्मसूत्र या धर्मशास्त्र का नाम दिया गया।

प्रश्न 4. मनुस्मृति क्या थी? इसका संकलन कब किया गया?

उत्तर-मनुस्मृति धर्मशास्त्र का सबसे बड़ा ग्रन्थ है। इसकी रचना 'मनु' ने की थी।इसका संकलन 200 ई. पू. से 200 ई. के बीच किया गया।

प्रश्न 5. वैदिक काल में प्रचलित चार आश्रमों के नाम तथा उसका काल लिखिए।

उत्तर-(1) ब्रह्मचर्य आश्रम-25 वर्ष की आयु तक।

(2) गृहस्थाश्रम-25 से 50 वर्ष की आयु तक।

(3) वानप्रस्थ आश्रम-50 से 75 वर्ष की आयु तक।

(4) संन्यास आश्रम-75 से 100 वर्ष की आयु तक।

प्रश्न 6. पुरुषार्थ का क्या अर्थ है?

उत्तर- पुरुषार्थ दो शब्दों से बना है-'पुरुष' तथा 'अर्थ'। पुरुष का अर्थ है 'विवेकशील प्राणी' तथा 'अर्थ' का तात्पर्य है 'लक्ष्य'। अतः पुरुषार्थ का अर्थ हुआ 'विवेकशील प्राणी का लक्ष्य', इसमें धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष आते हैं।

प्रश्न 7. वर्ण व्यवस्था के महत्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-वर्ण व्यवस्था के द्वारा समाज में सरल श्रम विभाजन किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति को परम्परागत रूप में अपने पिता के पेशे को अपनाना पड़ता था। दूसरे, वर्ण व्यवस्था का उद्देश्य तत्कालीन समाज की कुछ मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति सुचारू रूप से करना था। तीसरे, वर्ण व्यवस्था ने सामाजिक संगठन को दृढ़ता प्रदान की। चौथे, वर्ण व्यवस्था में सभी वर्गों का महत्व समान था, यद्यपि सभी के कार्य अलग-अलग थे। पाँचवें, रक्त की शुद्धता बनाए रखने के लिए वर्ण व्यवस्था आवश्यक थी। इससे स्पष्ट है कि वर्ण व्यवस्था का समाजशास्त्रीय महत्व था। यद्यपि वर्ण व्यवस्था का सैद्धान्तिक महत्व तो था, किन्तु व्यवहार में इसको कभी भी लागू नहीं किया जा सका।

प्रश्न 8. वर्ण-व्यवस्था के दोषों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-वर्ण व्यवस्था में अनेक दोष भी थे-(1) वर्ण व्यवस्था ने जातिवाद को बढ़ावा दिया।

 (2) वर्ण व्यवस्था के कारण समाज में ब्राह्मणों के महत्व में अत्यधिक वृद्धि हुई। ब्राह्मणों ने कर्मकाण्ड, हवन, पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान आदि को बहुत जटिल तथा खर्चीला बना दिया। जो साधारण आदमी से परे की चीज थी। 

(3) इसने छुआ-छूत को बढ़ावा दिया इससे समाज में शूद्रों की स्थिति दयनीय हो गई। 

(4) समाज में विभिन्नता तथा बिखराव पैदा हुआ। इससे समाज में कटुता तथा संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई।

प्रश्न 9. “महाभारत एक गतिशील ग्रन्थ है।" सिद्ध कीजिए।

उत्तर- यह सही है कि महाभारत एक गतिशील ग्रन्थ है। महाभारत का विकास संस्कृत पाठ के साथ ही समाप्त नहीं हुआ। शताब्दियों से इस महाकाव्य के अनेक पाठान्त भिन्न-भिन्न भाषाओं में लिखे गये। ये सब उस संवाद को दर्शाते थे जो इनके लेखकों, अन्य लोगों और समुदायों के बीच कायम हुए। अनेक कहानियाँ जिनका उदभव एक क्षेत्र विशेष में हुआ और जिनका खास लोगों के बीच प्रसार हुआ। वे सब इस महाकाव्य में समाहित कर ली गईं। इसके प्रसंगों को मूर्तिकला और चित्रों में भी दर्शाया गया है। इस काव्य ने नाटकों तथा नृत्य कलाओं के लिए भी विषय सामग्री प्रदान की है।

प्रश्न 10. महाभारत प्राचीनकाल के सामाजिक मूल्यों के अध्ययन का एक अच्छा साधन है। उचित तर्क देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर- (1) स्वजनों के बीच की लड़ाई पर आधारित होने के कारण यह समाज के विभिन्न पक्षों के इर्द-गिर्द घूमती है।

(2) हमें पता चलता है कि उस समय राजवंश पितृवंशिकता प्रणाली का अनुसरण करते थे। पैतृक संपत्ति पर पुत्रों का अधिकार होता था और पुत्रों की उत्पत्ति को महत्व दिया जाता था क्योंकि उन्हें ही वंश चलाने वाला माना जाता था।

(3) पुत्रियों को अलग तरह से देखा जाता था। अपने गोत्र से बाहर उनका विवाह कर देना ही माता-पिता का आदर्श था। उसे बहिर्विवाह-पद्धति कहा जाता था। कन्यादान पिता का महत्वपूर्ण कर्तव्य माना जाता था।

(4) उच्च परिवारों में बहुपति प्रथा प्रचलित थी। उदाहरण के लिए, द्रोपदी के पाँच पति थे। 

(5) परिवार पर वृद्ध पुरुष का आधिपत्य था। उदाहरण के लिए, युधिष्ठिर ने दयूत-क्रीड़ा में अपनी पत्नी द्रौपदी को भी दाँव पर लगा दिया था।

(6) महाभारत वर्णों तथा उनसे जुड़े व्यवसायों की जानकारी देता है।

(7) यह ग्रन्थ विभिन्न सामाजिक समूहों के आपसी सम्बन्धों पर प्रकाश डालता है। उदाहरण के लिए, हिडिम्बा का भीम से विवाह।

(8) इस ग्रन्थ से माँ तथा पुत्रों के बीच आपसी संबंधों का पता चलता है। उदाहरण के लिए, पांडवों ने अपनी माँ कुंती को पूरा सम्मान दिया परन्तु कौरवों ने अपनी माँ की राय को नहीं माना।


प्रश्न 11. वर्ण-संकर व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर-चार मूल वर्णों के मध्य तथा प्रत्येक वर्ण में ही किए गए अनुलोम तथा प्रतिलोम विवाहों के परिणामस्वरूप अनेक संकर जातियाँ बन गईं। मनुस्मृति के अनुसार, अगर पिता, माता से उच्च वर्ण का है, तो पुत्र की वर्ण स्थिति निम्नतर होगी। सूत्र तथा स्मृतिकाल में विभिन्न जातियों तथा उपजातियों के सदस्यों की असवर्ण स्त्रियों से उत्पन्न हुई संतान न तो पिता की संतान होती थी न माता की। वह एक अलग वर्ण की हो जाती थी। सवर्ण विवाह पर प्रतिबंधन होने पर बहुत-सी संकर जातियाँ बन चुकी थीं। वर्ण-संकर व्यवस्था से जुड़े कुछ प्रमुख तथ्य निम्नलिखित हैं-

(1) शूद्र अगर किसी द्विजातीय स्त्री से विवाह करता था, तो उत्पन्न संतान 'चांडाल' कहलाती थी

(2) क्षत्रिय की ब्राह्मण स्त्री से उत्पन्न पुत्र को 'सूत' कहा जाता था।

(3) वैश्य की ब्राह्मण स्त्री से उत्पन्न पुत्र को 'वैदेहक' कहा जाता था।

(4) वैश्य पुरुष और क्षत्रिय स्त्री से उत्पन्न पुत्र 'मागध' कहा जाता था।

(5) शूद्र द्वारा क्षत्रिय स्त्री से उत्पन्न पुत्र ‘निषाद' होता था।

(6) शूद्र द्वारा वैश्य स्त्री से उत्पन्न पुत्र 'आयोगव' होता था और बढ़ई का काम करता था।

(7) चाण्डाल की निषादी से उत्पन्न संतति 'पाण्डसोपाक' होती थी और बँसफोर का काम करती थी।


Chepter 4 
 विचारक विश्वास और इमारतें सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 1. महावीर स्वामी की दो शिक्षाएँ लिखिए।

उत्तर-(1) महावीर स्वामी ने कठिन तपस्या, व्रत उपवास पर बहुत बल दिया।

2) महावीर स्वामी ने निर्वाण के लिए त्रिरत्न (सम्यक् ज्ञान, सम्यक दर्शन तथा सम्यक चरित्र ), वस्त्र त्याग तथा पंच महाव्रत को अपनाने की शिक्षा दी।

प्रश्न 2. बौद्ध धर्म की दो शिक्षाएँ लिखिए।

उत्तर-(1) बुद्ध ने दुःख से मुक्ति पाने तथा निर्वाण प्राप्त करने के लिए चार आर्यसत्य बतलाए-दु:ख, समुदय (कारण), निरोध तथा मार्ग। (2) बुद्ध ने स्वावलम्बन पर सबसे अधिक बल दिया।


प्रश्न 3. कनिंघम कौन था ? उसका साँची के स्तूप के प्रति क्या योगदान है ?

उत्तर-अलैक्जेण्डर कनिंघम एक इतिहासकार तथा पुरातत्ववेत्ता था। उसका साँची के स्तूप के प्रति महत्वपूर्ण योगदान यह है कि उसने साँची के स्तूप पर भिलसा टॉप्स नामक पुस्तक लिखी, जो साँची के स्तूप पर लिखी गई सबसे प्रारम्भिक पुस्तक है। उसने पत्थर की मूर्तियों, बुद्ध मूर्तियों, तोरणद्वार आदि का अपनी पुस्तक में सटीक तथा सुन्दर वर्णन किया है।


प्रश्न 4."महायान सम्प्रदाय की बोधिसत्त" की अवधारण क्या थी ?

उत्तर-महायान सम्प्रदाय में बोधिसत्त को एक दयावान जीव माना जो सत्कर्मों से पुण्य कमाते थे। किन्तु वे इस पुण्य का प्रयोग संन्यास लेकर निर्वाण प्राप्त करने के लिए नहीं करते थे। वे इससे दूसरों की सहायता करते थे।

प्रश्न 5. जैन मत के पाँच महाव्रत कौन-कौन से हैं ?

उत्तर- जैन मत के पाँच महाव्रत इस प्रकार हैं-

(1) ब्रह्मचर्य-सभी इन्द्रिय विषय वासनाओं को त्यागकर संयम का जीवन व्यतीत करना। (2) अहिंसा-मन, वचन तथा कर्म से हिंसा न करना। (3) सत्य-सदैव सच बोलना असत्य का त्याग करना। (4) अस्तेय-किसी दूसरे की वस्तु को उसकी अनुमति के बिना ग्रहण करना। (5) अपरिग्रह-किसी भी वस्तु या व्यक्ति के साथ आसक्ति न रखना।

प्रश्न 6. बुद्ध के चार आर्य सत्य क्या हैं ?

उत्तर-  दुःख से मुक्ति पाने तथा निर्वाण प्राप्त करने के लिए बुद्ध ने चार आर्य सन

बताए हैं-(1) दु:ख, (2) दुःख समुदाय (कारण), (3) दुःख  निरोध, (4) दुःख निरोध  मार्ग।

प्रश्न 7. जैन मत की प्रमुख शिक्षाओं (सिद्धान्तों) की विवेचना कीजिए।

उत्तर -(i) महावीर स्वामी ने वेदों की प्रामाणिकता को स्वीकार नहीं किया, उन्होंने तीर्थकरों के ज्ञान व वचनों को ही प्रमाण माना।

(ii) कर्म के आधार पर ही जीवन-मरण का चक्र चलता रहता है।

(iii) जीवन का मुख्य उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है।

(iv) निर्वाण की अवस्था तक पहुँचने के लिए त्रिरत्न बताए-सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन तथा सम्यक् चरित्र।

(v) महावीर स्वामी ने पाँच महाव्रतों पर बल दिया-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य।

(vi) महावीर स्वामी ने व्रत, उपवास तथा कठिन तपस्या पर बल दिया।

(vii) जैन धर्म में अहिंसा पर अधिक बल दिया गया है।

(viii) परमात्मा और उसकी पूजा पर विश्वास नहीं।


प्रश्न 8. बौद्ध मत के अष्टांगिक मार्ग की विवेचना कीजिए।

उत्तर-(i) सम्यक् संकल्प-इससे तात्पर्य है सत्य, विश्वास और सत्य दृष्टिकोण प्राप्त करना। इससे मनुष्य पाप, पुण्य, अत्याचार, सदाचार, सत्य और असत्य में भेद समझ लेता है।

(ii) सम्यक् संकल्प-जो संकल्प या दृढ़ विचार, हिंसा, प्रतिहिंसा, कामना, राग आदि से मुक्त होता है, वही सम्यक् संकल्प है।

(iii) सम्यक् वाक्-इससे तात्पर्य है कि ऐसा सत्य वचन बोलना, जिसमें विनम्रता तथा मधुरता हो।

(iv) सम्यक् कर्मान्त-इसका अभिप्राय सत्कर्मों से है। हिंसा, चोरी, व्यभिचार से रहित कर्म सम्यक् कर्म हैं। दान, दया, सत्य, सेवा, अहिंसा, सदाचार आदि का पालन करें।

(v) सम्यक् आजीव-इसका तात्पर्य है कि जीविका उपार्जन का साधन अच्छा होना चाहिए।

(vi) सम्यक् व्यायाम-इससे अभिप्राय है कि अच्छा प्रयत्न करना। इसमें विशुद्ध विवेकपूर्ण और ज्ञान युक्त प्रयत्न होते हैं।

(Vii) सम्यक स्मृति -  इसमें इससे अभिप्राय है की मनुष्य को सदैव स्मरण रखना चाहिए की काया वेदना संख्या चित्र और मन सभी नाश जन्मा और मलिन धर्मा है अतः मनुष्य को अपने समस्त कार्य विधि तथा सावधानी से करनी चाहिए।

(Viii)  सम्यक समाधि -  इसका तात्पर्य चित्त की एकाग्रता और ध्यानस्त अवस्था से है।


प्रश्न 9. बौद्ध तथा जैन मत के सिद्धान्तों में चार समानताएँ लिखिए।

उत्तर-(i) जैन तथा बौद्ध दोनों ही सुधारवादी मत थे। दोनों ही मतों ने ब्राह्मण मत के कर्मकाण्ड, यज्ञ, पशुबलि, आडम्बर आदि का विरोध किया।

(ii) दोनों ही मतों का मूल सिद्धान्त है कि सांसारिक कष्टों और जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा पाना तथा निर्वाण प्राप्त करना है।

(iii) दोनो ही मतों ने जातिवाद का विरोध किया और सामाजिक समानता पर बल

(iv) दोनों ही मत मानवतावादी, बुद्धिवादी तथा जनवादी हैं।


प्रश्न 10. जैन धर्म की सफलता के क्या कारण थे?

उत्तर-जैन धर्म महावीर स्वामी के जीवन काल में सफल रहा। इसके निम्न कारण है

(1) महावीर स्वामी का व्यक्तित्व तथा प्रसार- महावीर स्वामी का व्यक्तित्व महान था। उनके तपस्वी जीवन का जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा था। महावीर स्वामी के जीवन काल में जैन धर्म का पर्याप्त प्रचार हुआ। वे स्वय घूम-घूम कर उपदेश देते थे और अपनी शिक्षाओं को जनता तक पहुँचाते थे।

(2) साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग- जैन धर्म की सफलता का महत्त्वपूर्ण कारण, जैन धर्म के प्रचार में साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग करना था। कठिन विषय को भी सरल, सुबोध तथा व्यावहारिक शैली में समझाने का प्रयास करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि समाज के सभी वर्गों के लोग जैन धर्म के सिद्धान्तों को समझ सकते थे।

(3) व्यावहारिक तथा नैतिक सिद्धान्त- महावीर स्वामी ने नैतिक तथा व्यावहारिक सिद्धान्तों के अनुकरण का उपदेश दिया, जिसका आम जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा।

(4) सभी जातियों को जैन धर्म का अनुकरण करने का अवसर – महावीर ने सभी जाति के लोगों के लिए जैन धर्म के द्वार खोल दिये। उनका मत था कि सभी जाति के लोग निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू धर्म के कर्मकाण्ड तथा जातिवाद से लोग तंग आकर जैन धर्म स्वीकार करने लगे।

(5) लगन के साथ प्रचार- जैन संघ के भिक्षु, भिक्षुणियों तथा मुनियों ने बड़ी लगन तथा ईमानदारी के साथ जैन धर्म का प्रचार किया। इसलिये जैन धर्म का प्रसार हुआ।

(6) राजाओं का संरक्षण- जैन धर्म को अनेक राजवंशों का संरक्षण प्राप्त हो गया था। जिसमें सम्राट बिम्बसार, अजातशत्रु, मल्लगण राज्य के शासक, लिच्छवि शासक, वत्स और अवन्ति के शासक प्रमुख थे। इनके कारण जैन धर्म का पर्याप्त प्रचार हुआ।

प्रश्न 11. पौराणिक धर्म की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-पौराणिक धर्म की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

(1) समन्वयवादी दृष्टिकोण- पौराणिक धर्म में समन्वयवादी दृष्टिकोण के दर्शन होते है। इसमें वैदिक धर्म के शिव, विष्णु आदि देवताओं के साथ-साथ अवैदिक देवी-देवताओं की भी सत्ता का प्रतिपादन किया गया, इसके अतिरिक्त इसमें अनेक नये देवी देवताओं की कल्पना करके उनकी पूजन उपासना विधि निर्धारित की गई।

(2) उदार दृष्टिकोण तथा देववादी पृवत्ति-  पौराणिक धर्म की अन्य विशेषताय: है कि इसमें उदार दृष्टिकोण अपनाया गया। वैसे तो इसमें एकेश्वरवाद पर जोर दिया गया, पर साथ ही देववादी प्रवृत्ति भी पनपती दृष्टिगत होती है। इसमें त्रिदेव को भी महत्व देकर ब्रह्म विष्णु और महेश को क्रमशः स्रष्टा, रक्षक और विनाशक मान कर प्रकृति की तीनों प्रवृत्तियों के बीच स्थापित किया गया।

(3) अनुष्ठानों का महत्व-    पौराणिक धर्म में अनुष्ठानों का भी महत्व है परन्तु ये वैदिक कर्मकाण्ड की अपेक्षा अधिक संक्षिप्त और सरल हैं। इनमें मन्त्र, जप तथा ध्यान को सरल | बनाया गया और यज्ञ न कर सकने की दशा में पुष्प, धूप, दीप और प्रसाद द्वारा भी पूजन विधि का विधान बताया गया।

(4) भाषा सरल तथा विषय वर्णन की विधि मनोरंजक- पुराणों की भाषा सरल तथा विषय वर्णन की विधि मनोरंजक है। इनका अध्ययन करने के लिये कोई बन्धन नहीं था। अतः इनमें प्रतिपादित धर्म सभी के लिये ग्राम और आचरित हो सका। स्त्रियाँ, शूद्र और विदेशी आदि सभी पौराणिक धर्म का पालन कर सकते थे। भारतीय संस्कृति में विदेशी तत्वों को अपने में मिला लेने की शक्ति पौराणिक धर्म की ही देन है।


(5) आचारण के बाह्य रूप का विधान-  पौराणिक धर्म में आचरण के बाह्य रूप का भी विधान है तीर्थ-यात्रा, दान-दक्षिणा, मंदिर आदि का निर्माण ,मूर्ति पूजा,तिलक चंदन ,शरीर पर भस्म मलना, उत्सव तथा धार्मिक भोज आदि की व्यवस्था की जाने के कारण यह धर्म लोकप्रियता और उत्साहवर्धक बना

 उपरोक्त विशेषताओं के कारण पौराणिक धर्म में बड़ी प्राप्ति की और उन्हें बेचने पर और इसका अतिशय विस्तार भी हुआ इस संदर्भ में ही पौराणिक धर्म के विभिन्न संप्रदायो  तथा विधियों  का अध्ययन करना उचित होगा।


NOTE-  दोस्तों आशा करते हैं आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई हो इसमें आपको कक्षा 12वीं के परीक्षा में आने वाले सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को बताया गया है आप इन प्रश्नों की अच्छे से तैयारी करें और इस पोस्ट को अवश्य ही अपने सभी दोस्तों को शेयर करें।


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