रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है क्या आप जानते हैं
दोस्तों रक्षाबंधन हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है यह त्यौहार केबल भाई बहनों के रिश्ते को ही मजबूत नहीं करता बल्कि एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है इस दिन बहने अपने भाइयों को राखी अर्थात रक्षा सूत्र बांधती है तथा भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं और उपहार देते हैं इस त्योहार पर सभी व्यक्ति अपनी धार्मिक कठ्ठरता को अलग रखकर बढ़-चढ़कर इस त्यौहार को मनाते हुए देखे जा सकते हैं इसलिए इसे एकता और भाईचारे का प्रतीक भी माना जाता है हमारे भारतीय इतिहास में भाई बहन की इस प्यारे से बंधन की कई गाथाएं भरी पड़ी है जहां केवल एक रक्षा सूत्र के लिए भाइयों ने अपनी बहन के लिए प्राण न्योछावर किए हैं तथा उनकी रक्षा की है। चलिए अब आपको बताते हैं की इस प्यारे से त्यौहार को मनाने की प्रथा कब से प्रारंभ हुई इसका क्या इतिहास है।
रक्षाबंधन हिंदू धर्म तथा जैन धर्म का महत्वपूर्ण त्यौहार है किंतु दोनों ही धर्मों में इनके मनाने का कारण अलग-अलग है आज हम दोनों ही धर्मों की उन घटनाओं के बारे में आपको बताएंगे जिन्हें इतिहास में रक्षाबंधन मनाने का कारण माना जाता है ।
हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं/ हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन का इतिहास
कहां जाता है कि जब द्रोपदी ने श्री कृष्ण के हाथ में अपनी साड़ी के पल्लू से पट्टी बांधी थी तब श्री कृष्ण ने द्रोपदी को उनकी रक्षा करने का वचन दिया था और तभी से इस त्यौहार को मनाने की प्रथा प्रारंभ हुई इस समय की घटना यह थी की युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे और वहां शिशुपाल ने श्री कृष्ण का अपमान किया भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र के द्वारा शिशुपाल का वध कर दिया किंतु जब सुदर्शन चक्र लौटकर श्री कृष्ण के हाथ में आ रहा था तब सुदर्शन चक्र से कृष्ण जी के हाथ में हल्की सी चोट आई जिसने खून बहता देख कर द्रोपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू को फाड़ कर श्री कृष्ण जी के हाथ पर पट्टी बांधी जिसके बदले श्री कृष्ण ने उन्हें उनकी रक्षा का वचन दिया था।यह घटना श्रावण पूर्णिमा को हुई थी इसलिए प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है।
रक्षाबंधन से जुड़ी एक और गाथा के अनुसार युद्ध स्थल में रक्षा सूत्र का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है यह गाथा कुछ इस प्रकार है की महाभारत युद्ध के समय युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा कि मैं यह युद्ध कैसे जीत सकता हूं तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा की हे युधिष्ठिर तुम अपने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधो वह अवश्य ही विजयी होंगे।यह घटना भी श्रावण पूर्णिमा को ही हुई थी। तभी से इस दिन सिपाहियों को राखी बांधी जाती है।
भगवान विष्णु जब स्वर्गलोक छोड़कर पाताललोक में वाली के साथ वास करने आ गए थे तो माता लक्ष्मी व्याकुल होकर अपने पति को स्वर्गलोक में वापस बुलाने का प्रयास करने लगी और वह राजा बलि के पास एक गरीब स्त्री बनकर गईं और उन्हें राखी बांधी तब राजा बलि ने कहा में तो आपको कोई उपहार नही दे सकता तो माता लक्ष्मी ने कहा आपके पास तो साक्षात भगवान विष्णु हैं वे मेरे पति हैं में उन्हें ही लेने आई हूं और अपने दिव्य अवतार में आ जाती हैं।क्योंकि राजा बलि रक्षासूत्र के लिए वचनवद्ध थे इसलिये उन्होंने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ स्वर्गलोक में वापस जाने दिया। कुछ लोगों का मानना है तभी से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा।
एक और गाथा भारतीय इतिहास में सुनने को मिलती है जिसमें एक पत्नी द्वारा पति को रक्षा सूत्र बांधने का उल्लेख मिलता है कहानी कुछ इस प्रकार है इंद्रदेव धरती के बासी बनने के लिए धरती पर आ पहुंचे तो उनकी पत्नी इंद्राणी बहुत परेशान हुई तब बृहस्पति देव ने उन्हें यह तरीका सुझाया और कहां कि तुम उन्हें रक्षा सूत्र बांधों और उन्हें अपने साथ आने के लिए कहो वह वचनवद्ध होने के कारण मना नहीं कर पाएंगे और ऐसा ही हुआ इंद्रदेव को अपनी पत्नी इंद्राणी के साथ देवलोक वापस आना पड़ा कहा जाता है तभी से रक्षा सूत्र बांधने का यह रिवाज बन गया।
आधुनिक इतिहास में भी ऐसी कई घटनाएं देखने को मिलती हैं जहाँ हे केवल एक रक्षा सूत्र से बड़ी-बड़ी जंग जीती गई तथा बड़े-बड़े संकटों को टाला जा सका ऐसी कहानियों के बारे में हम आपको बताते हैं सिकंदर महान की पत्नी को जब यह लगा कि राजा पौरुष से उनके पति को खतरा है तो उनकी पत्नी ने राजा पुरु को राखी बांधी और उनसे उनके पति की प्राणों की रक्षा का वचन लिया था।
राजस्थान मैं मेवाड़ के राजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ का सारा राजपाठ उनकी पत्नी रानी कर्मावती के हाथों में आ गया उनके दो अवयस्क पुत्र थे जिनकी संरक्षिका के रूप में रानी कर्मावती कार्य करती थी किंतु उनके कई दुश्मन हुए गुजरात का बहादुर शाह मेवाड़ पर आंख गड़ाए हुए था और रानी कर्मावती की सेना उस समय युद्ध जीतने की स्थिति में नहीं थी तब रानी कर्मावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजी राखी का महत्व और उससे जुड़ी गाथाएं सुनकर बादशाह हुमायूं बहुत खुश हुए और उन्होंने रानी कर्मावती को उनकी और उनकी राज्य की रक्षा का वचन दिया और अपने वचन को श शब्द निभाया भी तथा उनकी रक्षा की।
जेन धर्म मे रक्षाबंधन मनाने का क्या कारण है/जेन धर्म मे रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं
दोस्तों जैन धर्म में भी रक्षाबंधन को धूमधाम से मनाया जाता है वैसे तो सभी धर्मों के त्योहार अलग-अलग होते हैं यह तो यह कैसा त्योहार है जो हिंदू और जैन दोनों धर्मों में मनाया जाता है किंतु इसको मनाने के पीछे की गाथाएं दोनों धर्मों में अलग-अलग है चलिए जानते हैं कि जैन धर्म में रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं
जैन धर्म में रक्षाबंधन मनाने की कहानी हिंदू धर्म से बहुत ही अलग है यह कहानी एक मुनि के द्वारा 700 मुनियों की रक्षा करने की कहानी है जिसमें 1 मुनि श्रुतसागर ने अपने साथियों की रक्षा करने के लिए राजा बलि से 3 पग जमीन मांगी थी राजा बलि ने उन्हें तीन पग जमीन नापने के लिए कहा तो मुनी श्रुतसागर में अपना शरीर बड़ा कर समस्त जमीन तीन पग में नाप दी इससे धरती कंपित होने लगी राजा बलि ने उनसे शरीर छोटा करने की विनती की तथा इसके बाद उन्होंने तथा उनकी श्रावको ने मुनियों की सेवा की और ने चैतन्य अवस्था में लाए जब मुनि ठीक हो गए तब उन्हें अच्छे-अच्छे आहार दिए यह घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को ही घटित हुई थी इसलिए जैन धर्म में भी रक्षाबधन मनाया जाने लगा।
दोस्तों आपको रक्षाबंधन पर्व का ऐतीहासिक महत्व समझ आ गया होगा इसे अपने दोस्तों और भाई बहनों से शेयर करें।इस लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद....
Happy rakshabandhan
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