prachin kal ka itihaas/ प्राचीन काल का इतिहास

prachin kal ka itihaas/ प्राचीन काल का इतिहास 

Hello friends welcome to studygro.com  दोस्तों इतिहास हमे हमारी सभ्यता और संस्कृति की जानकारी देता है। आज हम आपको हमारे देश के प्राचीन इतिहास की पूरी जानकारी देने वाले हैं तो हमारे महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़िये तो चलिए शुरू करते हैं।-

इतिहास का अर्थ -

इतिहास शब्द संस्कृत के दो शब्दों इति+हास से मिलकर बना है।इति का अर्थ है प्राचीन तथा हास है का अर्थ है बीता हुआ अर्थात इतिहास का अर्थ है प्राचीन समय में बीता हुआ प्राचीन समय में जो घटनाक्रम घट चुका है हम उसी के बारे में इतिहास में पढ़ते हैं भारतीय इतिहास की जड़े बहुत गहराई मैं जाति हैं इसका अध्ययन बहुत विस्तृत है।

भारतीय इतिहास का वर्गीकरण-

भारतीय इतिहास को हम तीन वर्गों में बांट कर इसका अध्ययन करते हैं।

  1.                  प्राचीन इतिहास
  2.                  मध्य इतिहास
  3.                  आधुनिक इतिहास

प्राचीन इतिहास :-प्राचीन /प्रारम्भिक काल को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है।जो इस प्रकार हैं।-

  1.                   प्रागेतिहासिक काल
  2.                   आद्य ऐतिहासिक काल
  3.                    ऐतिहासिक 

प्रागैतिहासिक काल- प्रागेतिहासिक काल उस काल को कहते है जिसके पुरातत्ववेत्ताओं को साक्ष्य तो मिले हैं लेकिन लिखित वर्णन नही मिल सका है। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है-

         (1)पाषाण काल   

          (2)काष्य काल

(1) पाषाण काल:- इस समय प्रत्येक कार्य में पत्थरों से बने औजारों का इस्तेमाल किया जाता था हर तरफ पत्थर की बनी चीजों का बोल वाला था इसलिए ऐसे पाषाण काल नाम दिया गया है। इसे भी तीन भागों में विभाजित किया गया है।

(1)पुरापाषाण काल (2)मध्य पाषाण काल (3)तथा नवपाषाण काल

(अ)पुरापाषाण काल -इस काल मे आग का अविष्कार हुआ तथा पत्थर के ओजार बनाये जाने लगे थे।तथा आईस एज समाप्ति की कगार पर थी

(ब) मध्य पाषाण काल :- इस  समय तक मानव ने शिकार की नई युक्तियों की खोज कर ली थी इस समय पत्थर के अधिक तेज हथियारों का इस्तेमाल करने लगा था तथा पक्षियों की शिकार के लिए तीर कमान का आविष्कार हुआ साथ ही इस समय तक मानव पशु पालने लगा था आईस एज समाप्त हो चुकी थी तथा वातावरण गर्म होने लगा था।

(स) नव पाषाण काल :- नव पाषाण काल मे पहिये का अविष्कार हुआ। अब मानव ने स्थायी निवास बनना आरम्भ कर दिया था। इसी काल मे मानव ने कृषि करने की शरुआत की थी इस काल मैं बोई  जाने वाली पहली फसल गेहूं व जों थे जिसके साक्ष मेहरगढ़ से   प्राप्त हुए हैं।

कांस्य काल :- नवपाषाण काल के बाद मनुष्य ने धीरे धीरे विकास करते हुए लोहे तथा तांबे की खोज कर ली थी और अब मानव लोहे के औजार तथा तांबे के बर्तनों का प्रयोग करने लगा था।

आद्य ऐतिहासिक काल:- आद्य ऐतिहासिक काल उस समय को कहते हैं जिस के संबंध में पुरातत्वविदों को साक्ष तो मिले है साथ ही लिखित वर्णन भी मिला है परन्तु उनको अबतक पढ़ा नही जा सका इसका एक उदाहरण सिंधु सभ्यता (2350ई. पू.-1750ई. पू.) है जिसके साक्ष तो मिले है लेकिन उनके लिखित वर्णन को पढ़ने में अब तक सफलता प्राप्त नही हुई है। आद्य ऐतिहासिक कार्य का विस्तार पूर्वक वर्णन हम अपनी अगली पोस्ट में आपको देने वाले हैं।

ऐतिहासिक काल :- ऐतिहासिक काल उस समय को कहा जाता है जिसके बारे में हमारे पास साक्ष और लिखित वर्णन दोनों ही उपलब्ध हैं और दोनों को ही समझ सकते हैं और साथ ही इनको पढ़ा भी जा सकता है। इसका विस्तारित वर्णन हम आपको अगली पोस्ट में देगें अभी प्राचीन काल के बारे में और विस्तार से जान लेते हैं।

वैदिक साहित्य/अपौरुषीय/नित्य:- प्राचीन साहित्य को अच्छी तरह से जानने तथा समझने के लिए हमें वैदिक साहित्य के बारे में जानना आवश्यक है चलिए जानते हैं वैदिक साहित्य क्या है वैदिक साहित्य उस समय को कहा जाता है कहा जाता है जिस समय ऋषि मुनियों द्वारा वेदों की रचना की गई वैदिक साहित्य को अध्ययन की दृष्टि से हम दो भागों में विभाजित करते हैं।

(1)ऋग्वैदिक साहित्य(श्रुति) (2) उत्तर वैदिक साहित्य(स्मृति)

(1) ऋग्वैदिक साहित्य(श्रुति)- 

 इसे भी दो भागों में बांटा गया है यहाँ श्रुति का अर्थ है सुनी सुनाई बातों पर आधारित अर्थात इस साहित्य की रचना ऋषियो या उनके शिष्यों से सुनकर की गई है जिसके मानने में इतिहासकारो में मतभेद है कुछ इतिहासकार इसे अर्द्ध सत्य मानते हैं तो कुछ पूर्णरूपेण विश्वाश भी करते हैं।इसका विभाजन निम्न है    (अ) वेद  (ब)  ब्राह्मण वेद

(अ) वेद :- वेदों की संख्या 4 है चारों वेदों की रचना अलग-अलग आधार पर की गई हैं जो इस प्रकार हैं

  1. ऋग्वेद  - इस वेद में प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन किया गया है और इसमें औषधियों और चतुर्थ वर्ण धर्म का वर्णन किया गया है  ।     
  2. यजुर्वेद   - इस वेद में युद्ध नीतियों का वर्णन किया गया है   ।            
  3. सामवेद   - इस बीच में संगीत की उत्पत्ति हुई संगीत के साथ स्वरों का जन्म इसी बीच में हुआ ।     
  4. अथर्ववेद - इस वेद में  शिल्प कला का और जादू टोना का वर्णन मिलता है इसी बीच में मूर्ति पूजा का वर्णन भी मिलता है 
(ब)  ब्राह्मण वेद :- ब्राह्मण विद को 3 वर्गों में बांटा गया है
  1. ब्राह्मण ग्रंथ:-  ब्राह्मण ग्रंथ कर्मकांड पर आधारित हैं इनकी संख्या 7 है
  2. उपनिषद :-  यह दर्शनशास्त्र पर आधारित है उपनिषद कॉल 108 हैं
  3. अरण्यक :-  यह रहस्यवाद पर आधारित हैं अरण्यक की संख्या 12 है

उत्तरवैदिक साहित्य

उत्तर वैदिक साहित्य को दो वर्गों में बांटा गया है वेदांग और वेद वेदांग ओं की संख्या 6 है और चार उपवेद है

वेदांग- वेदंगों की संख्या 6 है सभी वेदांग गद्य शैली में है                           
शिक्षा    -    नाक 

ज्योतिष  -   आँख  

कल्प    -     हाथ 

व्याकरण  -   मुंह   

निरुक्त   -    कान

छंद     -      पैर

उपवेद - उपवेद वेदों की संख्या 4 है

आयुर्वेद   -   औषधि

धनुर्वेद    -  युद्ध

गन्धर्व वेद -  संगीत

शिल्पवेद    -  मूर्ति पूजा

वेदों के महत्वपूर्ण तथ्य

ऋग्वेद -   रचनाकार  -  वीश्वामित्र

 *  इसका अध्ययनकर्ता  को होत्र कहते हैं

*   इसमे 10 मण्डल( अध्याय),1028

      सूक्त(छंद),10462ऋचाएँ(श्लोक)हैं।

*   इसके दूसरे वाह तीसरे मंडल को प्रारंभिक मंडल या प्राथमिक मंडल कहते हैं।

*  इसकी तीसरे मंडल में गायत्री मंत्र लिखा हुआ है जोकि उस समय के सूर्य देवता अर्थात सावित्री को समर्पित है।

*  इसकी दसवें मंडल में चतुर स्वर्ण समाज की व्याख्या मिलती है क्योंकि वैदिक काल में कर्म प्रधान हुआ करते थे किंतु उत्तर वैदिक काल में ही यही जन्म आधारित हो गए थे।

           ब्राह्मण -   मुख   

          क्षत्रिय   - भुजाएं   

           वैश्य   -  जांघ

           शुद्र   -  चरण

(चारों समाजों की तुलना ब्रहम्मा जी के अंगों से की जाती थी।)

*   ई इसकी नवी मंडल में सोम देवता का उल्लेख मिलता है।

*  आठवीं मंडल में हस्तलिखित रचनाओं को खेल नाम दिया गया है।

*  ऋग्वेद में सबसे पवित्र नदी सावित्री को माना गया है तथा इसमें गंगा का उल्लेख एक बार और यमुना का उल्लेख केवल 3 बार ही मिलता है।

*  ऋग्वेद में अग्नि के लिए 200 मंत्र तथा इंद्र के लिए 250 मंत्र उल्लेखित है।

*  ऋग्वेद की भाषा संस्कृत लिपि ब्राह्मी है ।

*  इसके दो ब्राह्मण वेद हैं -1 कौषीतकि  2 ऐतरेय

*  किस का उपवेद आयुर्वेद है जिसमें औषधियों का ज्ञान मिलता है

यजुर्वेद   - रचनाकार -  याज्ञवल्य ऋषी

*  इसमें 1990 श्लोक है ।

*  इसकी पढ़ने वाले को अध्यरवू कहते हैं।

*  यजुर्वेद एकमात्र ऐसा भेद है जो गद्द और पद दोनों शैलियों में लिखा गया है ।

*  इसमें दो पक्ष हैं- कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष

*  इसकी दो ब्राह्मण वेद है- 1  शतपथ तथा  2 तैतरीय

*  इसका उपवेद धनुर्वेद है जिसमें युद्धों का वर्णन मिलता है।

सामवेद- रचनाकार - जैमिनी

*  संगीत का जनक कहते हैं।

*  पढ़ने वाली से उदत्र कहते हैं।

*  इसका उपवेद गंधर्व वेद है।

 *  इसके 1549 मन्त्र है जिसमे केवल 75 मन्त्र नए है।

*  इसके दो ब्राह्मण वेद हैं -  1 जैमिनी  2 ताण्डय

अथर्व वेद-  रचनाकार -  अथर्वा ऋषि

*  अथर्ववेद के उपनाम ब्रह्मा वेद तथा श्रेष्ठ वेद हैं।

*  सभा बसंती का वर्णन मिलता है सभा की तुलना वर्तमान की लोकसभा से तथा समिति की तुलना वर्तमान की राज्यसभा से की जाती है इसके अनुसार सभा व समिति भगवान प्रजापति की दो पुत्रियों के नाम हैं।

*  इसका एक ब्राह्मण ग्रंथ है -गोपथ

*  इसमें कन्याओं के जन्म की घोर निंदा की गई है।

*  इसका उपवेद शिल्प वेद है जिसमे जादू टोना का वर्णन मिलता है।

NOTE___ 

*  स्त्री की सबसे गिरी हुई स्थिति मैत्रीआणि  संहिता से मिलती है।

*  वेदत्रयी- इसमे ऋग्वेद ,यजुर्वेद तथा सामवेद आते हैं।

*  प्रस्थानत्रयी - इसमे भगवत गीता, ब्राह्मण वेद,तथा उपनिषद आते हैं।

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