श्रृंगार रस की परिभाषा, उदाहरण, भेद संयोग श्रृंगार, वियोग श्रृंगार

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श्रृंगार रस shringar ras - नायक एवं नायिका के परस्पर प्रेम का जहाँ वर्णन किया जाता है, वहाँ श्रृंगार रस होता है। श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति या प्रेम है और इस रस को रसराज भी कहा जाता है श्रृंगार शब्द दो शब्दों के योग से बना है- शृंग + आर काम भाव की उत्पत्ति को श्रृंगार कहा जाता है जबकि 'आर' शब्द का अर्थ गति या प्राप्त होता है। इस प्रकार शृंगार का अर्थ काम-भाव की दशा को प्राप्त होना होता है। इसके दो भेद हैं-
1. संयोग श्रृंगार
2. वियोग श्रृंगार

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श्रृंगार रस की परिभाषा shringar ras ki paribhasha - ''सहृदय के हृदय में स्थित रति नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव से संयोग होता है उसे श्रृंगार रस कहते हैं''।

श्रृंगार रस का उदाहरण shringar ras ke udaharan 

राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परिछाहीं।
याते सबै सुधि भूलि गईं, कर टेकि रही पल टारति नाहीं॥

श्रृंगार रस के भेद shringar ras ke bhed -
श्रृंगार रस के दो भेद होते हैं जो निम्न प्रकार हैं-

1. संयोग श्रृंगार sanyog singar - जहां पर नायक और नायिका के मिलने का चित्रण होता है वहां पर संयोग श्रृंगार होता है।

उदाहरण- 
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौहनि हंसे, सौंह करै नटि जाय।।

वियोग श्रृंगार viyog shringar - परस्पर प्रेम करने वाले व्यक्तियों के बिछड़ जाने की दशा वियोग श्रृंगार कहलाती है।

उदाहरण- 
दरद की मारु वन- वन डोल्यू, वैद्य मिल्या नहीं कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटैगी, जब वैद्य  संवलिया होय।।

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